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तमर्व॑न्तं॒ न सा॑न॒सिम॑रु॒षं न दि॒वः शिशु॑म्। म॒र्मृ॒ज्यन्ते॑ दि॒वेदि॑वे ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tam arvantaṁ na sānasim aruṣaṁ na divaḥ śiśum | marmṛjyante dive-dive ||

पद पाठ

तम्। अर्व॑न्तम्। न। सा॒न॒सिम्। अ॒रु॒षम्। न। दि॒वः। शिशु॑म्। म॒र्मृ॒ज्यन्ते॑। दि॒वेऽदि॑वे ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:15» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:16» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने राजन् ! जिस (दिवः) प्रकाश से (शिशुम्) पुत्र को (अर्वन्तम्) शीघ्र चलनेवाले घोड़े के (न) सदृश वा (अरुषम्) रक्तगुणों से विशिष्ट के (न) सदृश (सानसिम्) और विभाग करने योग्य पदार्थ को (दिवेदिवे) प्रतिदिन विद्वान् लोग (मर्मृज्यन्ते) शुद्ध करते हैं (तम्) उसको आप पवित्र करो ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो मनुष्य घोड़े के सदृश सन्तानों को शिक्षा देते हैं, वे नित्य सुख को बढ़ाते हैं ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! दिवः शिशुमर्वन्तं नारुषं न सानसिं दिवेदिवे विद्वांसो मर्मृज्यन्ते तं त्वं पवित्रय ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) वीरम् (अर्वन्तम्) शीघ्रगामिनमश्वम् (न) इव (सानसिम्) विभक्तव्यम् (अरुषम्) रक्तगुणविशिष्टम् (न) (दिवः) प्रकाशात् (शिशुम्) पुत्रम् (मर्मृज्यन्ते) शोधयन्ति (दिवेदिवे) प्रतिदिनम् ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । ये मनुष्या अश्ववत्सन्तानाञ्छिक्षन्ते ते नित्यं सुखं वर्द्धयन्ते ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे अश्वाप्रमाणे संतानांना शिक्षण देतात ती नित्य सुख वाढवितात. ॥ ६ ॥